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पित्ताशय की पथरी

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पित्ताशय की पथरी
अन्य नामGallstone disease, cholelith, cholecystolithiasis (gallstone in the gallbladder), choledocholithiasis (gallstone in a bile duct)[1]
यह पथरी प्रायः पित्ताशय में बनती है और इसके लक्षण तब बाहर आते हैं जब ये पित्ताशय प्रणाली की कोई नली बन्द कर देते हैं।
उच्चारण
विशेषज्ञता क्षेत्रसामान्य शल्यचिकित्सा
लक्षणप्रायः कुछ भी नहीं ; कभी-कभी दाहिनी तरफ की पसलियों के नीचे दर्द[2][3][4]
जटिलतापित्ताशय शोथ, अग्न्याशय शोथ, यकृत शोथ[2][4]
उद्भव४० वर्ष की आयु के बाद[2]
संकटगर्भ नियंत्रक गोलियाँ, गर्भावस्था, पारिवारिक इतिहास, मोटापा, मधुमेह, यकृत के रोग, कम समय में अधिक भार-हानि[2]
निदानलक्षणों पर आधारित, पराश्रव्य (अल्ट्रासाउन्ड) तकनीक से[2][4]
निवारणउचित भार, तंतुयुक्त भोजन, कम साधारण कार्बोहाइड्रेट वाला भोजन[2]
चिकित्साAsymptomatic: none,[2] ursodeoxycholic acid (UDCA) and Chenodeoxycholic acid
Pain: surgery ERCP, Cholecystectomy[2]
चिकित्सा अवधिशल्यचिकित्सा द्वारा छुटकारा[2]
आवृत्ति10–15% वयस्कों में (विकसित देशों के)[4]

पित्ताशय की पथरी, पित्ताशय के अन्दर एक या अनेक कठोर पिण्ड होते हैं। ये पित्त अवयवों के संघनन से बना हुआ रवाकृत जमाव होता है। इन पथरियों का निर्माण पित्ताशय के अन्दर होता है लेकिन पित्त मार्ग के अन्य भागों में भी पहुंच सकती है जैसे पुटीय नलिका, सामान्य पित्त नलिका, अग्न्याशयीय नलिका या एम्प्युला ऑफ वेटर में।

पित्ताशय में पथरी की जटिल अवस्था में 'तीव्र कोलेसिसटाइटिस' हो सकता है जिसमें पित्ताशय में पित्त के अवरोधन के कारण सूजन हो जाता है। इसके बाद प्रायः आंत संबंधी सूक्ष्मजीवों द्वारा द्वितीयक संक्रमण भी उत्पन्न हो जाता है। मुख्यतः एस्चीरिचिया कोली और बैक्टिरॉयड्स वर्ग के जीवाणु पित्त मार्ग के अन्य हिस्सों में पथरी की उपस्थिति के कारण पित्त नलिकाओं में अवरोध पैदा कर सकते हैं जोकि 'एसेन्डिंग कोलैनजाइटिस' या 'पैन्क्रियेटाइटिस' जैसी गंभीर अवस्थाओं तक पहुंच सकता है। इन दोनों में से कोई भी अवस्था प्राणों के लिए घातक हो सकती है और इसलिए इन्हें चिकित्सीय आपातस्थिति के रूप में देखा जाता है।

परिभाषाएं

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पित्ताशय में पथरियों की उपस्थिति को कोलेलिथियेसिस शब्द से संदर्भित किया जाता है (यूनानी शब्द: chol -, "bile" + lith -, "stone" + iasis -, "process"). यदि पित्ताशय की पथरी पित्त मार्ग में पहुंच जाती है तो इस अवस्था को कोलेडोकोलिथियेसिस कहते हैं (यूनानी शब्द: chol -, "bile" + docho -, "duct" + lith -, "stone" + iasis -, "process"). कोलेडोकोलिथियेसिस प्रायः पैत्तिक वृक्ष के अवरोधित होने से सम्बद्ध होता है, जिसके परिणामस्वरूप गंभीर एसेन्डिंग कोलैनजाइटिस हो सकता है (यूनानी शब्द: chol -, "bile" + ang -, "vessel" + itis -, "inflammation"), जोकि पित्त नलिकाओं का एक गंभीर संक्रमण है। एम्प्युला ऑफ वेटर में पथरियों की उपस्थिति अग्न्याशय की एक्सोक्राइन प्रणाली को अवरोधित कर सकती है, जिसके परिणामस्वरूप पैन्क्रियेटाइटिस हो सकता है।

विशेषताएं और संरचना

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पित्ताशय अनेकों पित्त पथरियों को दिखाने के लिए खुल गया। बड़े, पीले रंग के जमाव संभवतः अधिकतर कोलेस्ट्रौल के बने हैं, जबकि अन्य पथरियों के हरे और भूरे रंग से यह लगता है कि वह पित वर्णकों जैसे, बिलीवर्डिन और स्टेर्कोबिलिन से बने हैं।
पित्ताशय के अन्दर अनेकों छोटी कोलेस्ट्रौल पित्त पथरियां दिखायी पड़ी.

पित्त की पथरियां विभिन्न आकार को होती हैं, ये रेत के एक कण से लेकर गोल्फ की गेंद जितनी बड़ी हो सकती है।[उद्धरण चाहिए] पित्ताशय में एक बड़ी पथरी या कई छोटी पथरियां मौजूद हो सकती हैं। स्युडोलिथ्स, जिन्हें कभी-कभी स्लज भी कहा जाता है, यह गाढ़ा स्राव होता है, जो पित्ताशय के अन्दर अकेले या पूर्ण रूप से विकसित पथरी के साथ जुड़ा हुआ पाया जा सकता है। इसकी नैदानिक प्रस्तुती कोलेलिथियेसिस के सामान ही होती है।[उद्धरण चाहिए] पिताशय की पथरी का संघटन आयु, भोजन और नस्ल द्वारा प्रभावित होता है।[5] इनके संघटन के आधार पर, पित्ताशय की पथरियों को निम्न प्रकारों में विभक्त किया जा सकता है:

कोलेस्ट्रॉल पथरियां

कोलेस्ट्रॉल पथरियां विभिन्न रंगों की हो सकती है, यह हलके पीले रंग से लेकर गहरे हरे या भूरे रंग की होती है और इसका आकार अंडे के समान होता है तथा यह 2 से 3 सेमी लम्बी हो सकती है, जिसमे प्रायः मध्य में एक छोटा सा गहरे रंग का धब्बा होता है। इस प्रकार से वर्गीकृत किये जाने हेतु इनके संघटन में अवश्य ही भार के अनुसार कम से कम 80% कोलेस्ट्रौल (या जापानी वर्गीकरण प्रणाली के अनुसार 70%) होना चाहिए.[6]

वर्णक पथरियां

वर्णक पथरियां छोटी, गहरे रंग की पथरी होती है जो पित्ताशय में पाए जाने वाले बिलिरूबिन और कैल्सियम के लवणों से बनी होती है। इनमे कोलेस्ट्रौल की मात्रा 20 प्रतिशत से भी कम होती है (या जापानी वर्गीकरण प्रणाली के अनुसार, 30 प्रतिशत).[6]

मिश्रित पथरियां

मिश्रित पथरियों में आदर्श रूप से 20 से 80 प्रतिशत कोलेस्ट्रौल (या जापानी वर्गीकरण प्रणाली के अनुसार 30 से 70 प्रतिशत) होता है।[6] अन्य सामान्य संघटकों में कैल्सियम कार्बोनेट, पॉमिटेट फॉस्फेट, बिलिरुबिन और अन्य पित्त वर्णक हैं। इनके कैल्सियम घटक के कारण ये प्रायः रेडियोग्राफी द्वारा दृश्य होती हैं।

पित्तपथरी (कोलेलिथियेसिस)

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संकेत व लक्षण

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इस अल्ट्रासाउंड के चित्र में पित्ताशय के आधार में एक बड़ी पित्त पथरी दिखायी पड़ रही है।

पित्ताशय की पथरी कई वर्षों तक लक्षणरहित भी रह सकती है। पित्ताशय की ऐसी पथरी को "साइलेंट स्टोन" कहते हैं और इनके लिए उपचार की आवश्यकता नही होती.[7][8] आमतौर पर लक्षण तब दिखने शुरू होते हैं, जब पथरी एक निश्चित आकार प्राप्त कर लेती है (>8 मिमि).[9] पित्ताशय की पथरी का एक प्रमुख लक्षण "पथरी का दौरा" होता है जिसमे व्यक्ति को पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से में अत्यधिक दर्द होता है, जिसके बाद प्रायः मिचली और उल्टी आती है, जो 30 मिनट से लेकर कई घंटों तक निरंतर बढ़ती ही जाती है। किसी मरीज़ को ऐसा ही दर्द कंधे की हड्डियों के बीच या दाहिने कंधे के नीचे भी हो सकता है। यह लक्षण "गुर्दे की पथरी के दौरे" से मिलते-जुलते हो सकते हैं। अक्सर ये दौरे विशेषतः वसायुक्त भोजन करने के बाद आते हैं और लगभग हमेशा ही यह दौरे रात के समय आते हैं। अन्य लक्षणों में, पेट का फूलना, वसायुक्त भोजन के पाचन में समस्या, डकार आना, गैस बनना और अपच इत्यादि होते हैं।

ऐसे मामलों में शारीरिक परीक्षण किये जाने की स्थिति में सभी मर्फी लक्षण (रोग निदान की एक प्रणाली) सकारात्मक पाए जाते हैं।

पित्ताशय की पथरी का खतरा पैदा करने वाले लक्षणों में अधिक वज़न होना, 40 के आसपास या उससे अधिक उम्र का होना और समय से पूर्व रजोनिवृत्ति का होना आदि हैं;[10] यह अवस्था अन्य नस्लों की अपेक्षा सफ़ेद नस्ल के लोगों में अधिक प्रबल होती है। मेलाटोनिन की कमी भी पित्ताशय की पथरी का एक प्रमुख कारण होती है, क्योंकि मेलाटोनिन कोलेस्ट्रौल के स्राव को रोकता है और साथ ही कोलेस्ट्रौल के पित्त में परिवर्तित होने की क्रिया को बढ़ाता भी है और यह एक एंटीऑक्सीडेंट भी है जो पित्ताशय के जारणकारी दबाव को कम करने में समर्थ होता है।[11] शोधकर्ताओं का यह मानना है कि पित्ताशय की पथरी कई कारणों के संयोजन से होती है, जिसमे वंशानुगत शारीरिक गुणधर्म, शरीर का वज़न, पित्ताशय की गतिशीलता और संभवतः भोजन भी शामिल है। हालांकि इन जोखिम संबंधी कारणों की अनुपस्थिति भी पित्ताशय की पथरी की सम्भावना को समाप्त नहीं कर सकती.

पित्ताशय की पथरी और भोजन के मध्य हालांकि कोई सीधा सम्बन्ध साबित नहीं किया जा सका है; हालांकि कम रेशेयुक्त, उच्च कोलेस्ट्रौल युक्त भोजन तथा उच्च स्टार्च युक्त भोजन खाने से भी पित्ताशय में पथरी के बनने की सम्भावना बढ़ जाती है। पोषण संबंधी अन्य कारण जिनसे पित्ताशय की पथरी होने की सम्भावना बढ़ सकती है उनमे तीव्रता के साथ वज़न घटना, कब्ज़, पर्याप्त से कम भोजन करना, अधिक मछली नहीं खाना तथा निम्नांकित पोषक तत्वों, फोलेट, मैगनीसियम, कैल्सियम और विटामिन सी की कम मात्र ग्रहण करना शामिल है।[12] दूसरी ओर शराब (वाइन) और समूचे अन्न से बनी ब्रेड आदि के सेवन से पित्ताशय की पथरी होने की सम्भावना कम हो जाती है।[13] विकासशील विश्व में सामान्यतया वर्णक प्रकार की पित्ताशयीय पथरी ही अधिक देखने को मिलती है। वर्णक प्रकार की पथरी होने का जोखिम बढ़ाने वाले कारणों में हेमोलिटिक एनेमियास (जैसे सिकल सेल विकार और आनुवंशिक स्फेरोकाइटोसिस), सिरोसिस और पित्तीय मार्ग संक्रमण आदि आते हैं।[14] एरिथ्रोपोएटिक प्रोटोपौर्फिरिया (ईपीपी (EPP)) से ग्रसित व्यक्तियों में पित्ताशय की पथरी होने का खतरा अधिक होता है।[15][16]

पैथोफिज़ियोलॉजी

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कोलेस्ट्रौल पित्त पथरी तब होती है, जब पित्त में कोलेस्ट्रौल की मात्रा बहुत अधिक होती है और इसमें पर्याप्त पित्त लवण नहीं होते हैं। कोलेस्ट्रौल की अधिक मात्रा के अतिरिक्त दो अन्य कारण और भी हैं जिन्हें पित्त पथरी होने के प्रमुख कारणों के रूप में देखा जाता है। पहला कारण यह है कि पित्ताशय कितनी बार और कितने ठीक से संकुचित होता है; पित्ताशय के कभी-कभी खाली होने और पूरी तरह से खाली न होने के कारण भी पित्त का जमाव अधिक हो जाता है जोकि पित्त पथरी का निर्माण करता है। दूसरा कारण लीवर और पित्त में प्रोटीन की उपस्थिति है जो पित्त पथरी में कोलेस्ट्रौल के रवाकरण को रोकता या बढ़ाता है। इसके अतिरिक्त, गर्भावस्था, हार्मोन उपचार या मिश्रित प्रकार के (जिनमे एस्ट्रोजेन उपस्थित हो) हार्मोनल गर्भनिरोधक के प्रयोग के परिणामस्वरूप एस्ट्रोजन हार्मोन का बढ़ा हुआ स्तर पित्त में कोलेस्ट्रौल के स्तर को बढ़ा सकता है और पित्ताशय की गतिशीलता को कम भी कर सकता है जिसके फलस्वरूप पित्त पथरी बन जाती हैं।

रोग-निदान

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चिकित्सा-विज्ञान

कभी-कभी कोलेस्ट्रौल पित्त पथरी मौखिक रूप से अर्सोडिऑक्सीकोलिक एसिड के द्वारा भी गलायी जा सकती है लेकिन इसके लिए यह आवश्यक होता है कि मरीज़ कम से कम 2 वर्ष तक इसकी दवा लेता रहे.[17] हालांकि, एक बार दवा बंद करने पर फिर से पथरी हो सकती है। पथरी के कारण सामान्य पित्त नलिका में होने वाले अवरोध को एंडोस्कोपी रेट्रोग्रेड स्फिन्क्ट्रोटॉमी (ईआरएस (ERS)) के द्वारा हटाया भी जा सकता है जिसके उपरांत एंडोस्कोपिक रेट्रोग्रेड कोलएंजियोपैन्क्रियेटोग्राफी (ईआरसीपी (ERCP)) की जाती है। लिथोट्रिप्सी (एक्स्ट्राकॉर्पोरियल शॉक वेव थेरेपी) नामक प्रक्रिया द्वारा पित्त पथरी को तोड़ा जा सकता है।[17] जिसमे, अल्ट्रासोनिक शॉक तरंगों को पथरी के एक बिंदु पर एकत्रित करके उसे छोटे टुकड़ों में तोड़ दिया जाता है। इससे ये सरलता से मल के द्वारा निकल जाती हैं। हालांकि, उपचार की यह पद्धति तभी उपयुक्त समझी जाती है जब पथरियों की संख्या बहुत कम हो.

शल्य चिकित्सा संबंधी

कोलेसिस्टेकटॉमी (पित्ताशय को निकालना) के द्वारा कोलेलिथियेसिस के पुनः होने की सम्भावना 99 प्रतिशत तक कम हो जाती है। केवल लक्षणात्मक मरीजों में ही शल्य चिकित्सा की जानी चाहिए. अधिकांश लोगों में पित्ताशय की अनुपस्थिति से कोई नकारात्मक परिणाम नहीं होता. हालांकि, अधिकांश लोगों में - 5 से 40 प्रतिशत लोगों में - पोस्टकोलेसिस्टेकटॉमी सिंड्रोम[18] नामक अवस्था विकसित हो जाती है जोकि गैस्ट्रोइंटेसटाइनल समस्या और पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से में निरंतर दर्द पैदा कर सकती है। इसके अतिरिक्त, अधिकांश मरीजों, लगभग 20 प्रतिशत में दीर्घकालिक डायरिया हो जाता है।[19]

कोलेसिस्टेकटॉमी के लिए दो विकल्प होते हैं:

  • ओपन कोलेसिस्टेकटॉमी: यह प्रक्रिया पेट (लापरोटॉमी) में निचली दाहिनी पसली के नीचे एक चीरे द्वारा की जाती है। आदर्श रूप से स्वास्थलाभ के लिए 3-5 दिन तक अस्पताल में रहना पड़ता है, अस्पताल से छूटने के एक सप्ताह बाद साधारण भोजन लिया जा सकता है और इसके कई सप्ताह बाद सामान्य दिनचर्या शुरू की जा सकती है।[7]
  • लैप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेकटॉमी: इस प्रक्रिया का प्रयोग 1980 के दशक में शुरू हुआ था,[20] इसमें कैमरे और उपकरण के लिए तीन या चार छोटे छेद किये जाते हैं। ऑपरेशन के बाद की जाने वाली देखभाल में आदर्श रूप से उसी दिन छुट्टी दे दी जाती है या एक रात अस्पताल में रहना पड़ता है, इसके बाद कुछ दिनों तक घर पर आराम करने की और दर्द होने पर दवा लेने की सलाह दी जाती है।[7] जो मरीज़ लैप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेकटॉमी करवाते हैं, वे अस्पताल से छुट्टी मिलने के एक सप्ताह बाद साधारण भोजन और मामूली गतिविधियां शुरू कर सकते हैं, इस दौरान उनका ऊर्जा स्तर कुछ कम रहेगा और उन्हें एक या दो महीने तक हल्का दर्द हो सकता है। अध्ययनों से यह प्रदर्शित हुआ है कि यह प्रक्रिया भी ओपन कोलेसिस्टेकटॉमी, जोकि अधिक कठिन है, के समान ही प्रभावी है किन्तु इसके लिए एक आवश्यक परिस्थिति यह है कि प्रक्रिया शुरू करने के पूर्व पथरियों को कोलैंजियोग्राम द्वारा सटीक ढंग से ढूंढ लिया जाये जिससे कि उन सभी को हटाया जा सके. [उद्धरण चाहिए]

जानपदिक रोग-विज्ञान

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पित्तनली में पथरी

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सामान्य पित्त नलिका में केंद्र से दूर दो पथरियों की एमआरसीपी (MRCP) छवि.

कोलेडोकोलिथियेसिस का अर्थ सामान्य पित्त नलिका में पित्त पथरी की उपस्थिति है। इसके कारण पीलिया हो सकता है और लीवर कोशिका क्षतिग्रस्त हो सकती है, इसके लिए कोलेसिस्टेकटॉमी और/या ईआरसीपी (ERCP) उपचार की आवश्यकता पड़ती है।

संकेत व लक्षण

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शारीरिक परीक्षण करने पर मर्फी के सभी लक्षणों के सकारात्मक परिणाम आना अत्यंत सामान्य है। पित्त अवरोध की स्थिति में त्वचा या आंखों का पीलिया होना भी एक महत्त्वपूर्ण लक्षण है। पीलिया और/या मिटटी के रंग का मल आने पर कोलेडोकीलिथियेसिस या यहां तक कि गॉलस्टोन पैन्क्रियेटाइटिस होने की सम्भावना हो सकती है।[7] यदि ऊपर बताये गए लक्षणों के साथ बुखार आता है और जाड़ा लगता है तो एसेन्डिंग कोलेंजाइटिस की सम्भावना पर भी विचार किया जा सकता है।

हालांकि पथरी सामान्य पित्त मार्ग के द्वारा प्रायः ही ड्यूओडेनम (छोटी आंत का शुरूआती हिस्सा) तक जा सकती है, कुछ पथरियां आकर में इतनी बड़ी हो सकती हैं कि वे सीबीडी (कॉमन बाइलरी डक्ट या सामान्य पित्त नलिका) से होकर निकल नहीं पाती और इसे अवरोधित कर देती हैं। इसमें एक जोखिम पूर्ण सम्भावना ड्यूओडेनल डाइवर्टीक्युलम की होती है।

पैथोफिज़ियोलॉजी

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पित्त नलिका में अवरोध पीलिया, क्षारीय फॉस्फेटों के उच्च स्तर, रक्त में संयुक्त बिलिरुबिन की अधिक मात्र और रक्त में कोलेस्ट्रौल की अधिक मात्रा का कारण बन सकता है। इससे गंभीर पैन्क्रियेटाइटिस और एसेन्डिंग कोलैनजाइटिस भी हो सकता है।

रोग-निदान

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चित्र:Impacted ampulla.jpg
एमआरसीपी (MRCP) के दौरान देखी गयी सामान्य पित्त नलिका में उपस्थित पथरी जो एम्प्युला ऑफ वेटर पर प्रभाव डाल रही है।

कोलेडोकोलिथियेसिस (सामान्य पित्त नलिका में उपस्थित पथरियां), कोलेलिथियेसिस (पित्त पथरी) से होने वाली एक जटिलता है, इसलिए पहला कदम कोलेलिथियेसिस की जांच होना चाहिए. आदर्श रूप से कोलेलिथियेसिस से ग्रस्त मरीज़ पेट के दाहिनी ऊपरी हिस्से में दर्द की शिकायत के साथ आते हैं और इसके साथ मितली और उलटी के लक्षण भी होते हैं, यह सब विशेषतः अधिक वसायुक्त भोजन लेने के बाद होता है। पेट का अल्ट्रासाउंड करने के द्वारा, जो पित्ताशय की पथरी का अल्ट्रासोनिक छायाचित्र दिखाता है, चिकित्सक कोलेलिथियेसिस की पुष्टि कर सकता है।

यदि लीवर फंक्शन रक्त परीक्षण में बिलिरुबिन की संख्या अधिक आती है तो कोलेडोकोलिथियेसिस की जांच कराने की सलाह दी जाती है। इस जांच की पुष्टि एक मैग्नेटिक रेसोनेंस कोलैंजियोपैन्क्रियेटोग्राफी (एमआरसीपी (MRCP)), ईआरसीपी (ERCP) या एक इंट्राऔपरेटिव कोलैंजियोग्राम द्वारा की जाती है। यदि पित्त पथरी से ग्रस्त एक मरीज़ के लिए पित्ताशय को निकलवाना आवश्यक हो जाता है तो शल्य चिकित्सक ऐसा करने का निर्णय ले सकता है और शल्य क्रिया के दौरान एक कोलैंजियोग्राम कर सकता है। यदि कोलैंजियोग्राम पित्त नलिका में पथरी के होने की पुष्टि करता है तो शल्य चिकित्सक पथरी को आवेगपूर्वक आंत में बहाने के द्वारा या पुटीय नलिका द्वारा पथरी को लौटने के द्वारा इस समस्या का निदान कर सकता है।

एक अन्य समाधान यह है कि चिकित्सक शल्य चिकित्सा के पूर्व ही ईआरसीपी (ERCP) करने का निर्णय ले सकता है। ईआरसीपी (ERCP) का लाभ यह है कि इसका उपयोग सिर्फ जांच में ही नहीं अपितु उपचार में भी किया जा सकता है। ईआरसीपी (ERCP) के दौरान एंडोस्कोपी करने वाला चिकित्सक शल्य क्रिया के द्वारा पित्त नलिका के प्रवेश द्वार को बड़ा कर सकता है और प्रवेश द्वारा से ही पथरी को निकाल सकता है। हालांकि, ईआरसीपी (ERCP) एक पीड़ादायक प्रक्रिया है और इसकी भी अपनी संभाव्य जटिलतायें हैं। अतः, यदि इस शंका के सत्य होने की सम्भावना कम हो तो चिकित्सक ईआरसीपी (ERCP) या शल्य क्रिया से पूर्व, एमआरसीपी (MRCP) द्वारा परीक्षण की पुष्टि का निर्णय ले सकता है, जोकि एक पीड़ारहित छाया तकनीक है।

ईआरसीपी (ERCP) के दौरान ली गयी फ्लोरोस्कोपिक छवि और ड्यूओडेनोस्कोप की सहायता से की गयी कोलैंजियोपैन्क्रियेटोस्कोपी.पित्ताशय और पुटीय नलिका में उपस्थित अनेकों पित्त पथरियां.सामान्य पित्त नलिका और अग्न्याशयीय नलिका यहां पर खुली दिखायी पड़ती हैं।

इसके उपचार के अंतर्गत ईआरसीपी (ERCP) तकनीक द्वारा पथरी को हटाया जाता है। आदर्श रूप से भविष्य में पुनः सामान्य पित्त नलिका के अवरोध से बचने के लिए इसमें पित्ताशय को निकाल दिया जाता है, यह एक शल्य क्रिया है जिसे कोलेसिस्टेकटॉमी कहते हैं।

जानपदिक रोग-विज्ञान

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अन्य जानवरों में

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पित्त पथरी मांस-प्रक्रमण के फलस्वरूप प्राप्त होने वाला एक मूल्यवान उप उत्पाद है, जो कुछ संवर्धनों के लोक उपचार में तथाकथित ज्वरहारी (एंटीपाइरेटिक) और प्रतिविष (एंटीडोट) के रूप में प्रयोग किया जाता है और 10 अमेरिकी डॉलर प्रतिग्राम जितना आकर्षक लाभ प्राप्त करता है, विशेषकर चीन में. सबसे बेहतरीन किस्म की पित्त पथरी डेरी (दुग्धशाला) की पुरानी गायों से प्राप्त की जाती है, जिन्हें चीनी भाषा में (बैल से प्राप्त पीली वस्तु) कहा जाता है। कुत्तों से प्राप्त इस प्रकार की पित्त पथरी को चीनी भाषा में गोउ-बाओ (कुत्तों की बहुमूल्य वस्तु) कहा जाता है, आजकल इनका भी प्रयोग किया जाता है। जिस प्रकार हीरे की खदानों में होता है काफी हद तक उसी प्रकार, कसाईखानों में अवशिष्ट विभाग भी बहुत सावधानीपूर्वक कर्मियों की तलाशी लेता है कि कहीं वे पित्त पथरी चुराकर न ले जायें.[21]

इन्हें भी देखें

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  • पोर्सलिन पित्ताशय

सन्दर्भ

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सामान्य
  • Roizen MF; Oz MC (2005). You—the owner's manual: an insider's guide to the body that will make you healthier and younger (1st संस्करण). New York: HarperCollins. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780060765316. अभिगमन तिथि 2010-11-06.
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विशेष
  1. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; Qui2013 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  2. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; NIH2013 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  3. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; Lee2015 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
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बाहरी कड़ियाँ

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